आज 2 दिसंबर है और पूरा भारत आज राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस मना रहा है. राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस हर वर्ष 2 दिसंबर को भोपाल गैस पीड़ितों की याद में मनाया जाता है. आज ही के दिन वर्ष 1984 में मध्यप्रदेश के भोपाल शहर में गैस लीक में हजारों लोगों की जान गई थी. इस घटना को 38 वर्ष बीत चुके हैं लेकिन आज भी भारत में हर वर्ष लाखों लोग जहरीली प्रदूषित हवा के कारण मर रहे हैं |
हर वर्ष 24 लाख से ज्यादा लोगों की मौत की वजह है प्रदूषण
साइंस जर्नल लांसेट के मुताबिक भारत मे हर वर्ष 24 लाख से ज्यादा लोगों की मौत प्रदूषण की वजह से होती है. वहीं इन 24 लाख में 9 लाख से ज्यादा लोगों की मृत्यु वायु प्रदूषण के कारण होती है. वैश्विक आंकड़ो की बात करें तो लांसेट की रिपोर्ट के मुताबिक विश्व मे सालाना 90 लाख मौतों का कारण प्रदूषण है.
आसान भाषा में समझे तो विश्व मे प्रदूषण से मरने वाला हर 10 में तीसरा व्यक्ति भारतीय है और हर दिन 6 हज़ार 575 भारतीयों की जान प्रदूषण ले रहा है.
प्रदूषण की अर्थव्यवस्था पर मार
प्रदूषण सिर्फ मानव सभ्यता को नहीं खराब कर रहा है बल्कि देश की आर्थिक दशा पर भी बट्टा लगा रहा है. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (World Economic Forum) की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषण की वजह से भारत को हर साल 7 लाख करोड़ से ज्यादा का नुकसान होता है. यानी हर दिन 2 हज़ार करोड़ से ज्यादा का नुकसान भारतीय अर्थव्यवस्था झेलती है. 7 लाख करोड़ हर वर्ष यानी भारत की अर्थव्यवस्था का लगभग 3 फीसदी हिस्सा सिर्फ प्रदूषण की वजह से नष्ट हो रहा है.
भारत मे प्रदूषण की बात करें तो गुरुवार को देश की राजधानी दिल्ली विश्व की सबसे प्रदूषित राजधानी और महानगर थी. IQ AIR की 1 दिसंबर की रैंकिंग में विश्व मे टॉप 20 प्रदूषित महानगरों में भारत के 3 महानगर दिल्ली, मुंबई और कलकत्ता थे. भारत के अलावा सिर्फ पाकिस्तान ही था जिसके 3 महानगर IQ AIR की टॉप 20 प्रदूषित शहरों की लिस्ट में थे. CPCB के आंकड़ों के मुताबिक भारत के 30 शहरों का AQI कल बेहद खराब श्रेणी में था यानी 300 के पार था.
प्रदूषण की वजह से पलायन
उत्तर भारत मे प्रदूषण आज की समस्या नहीं है बल्कि दशकों पुरानी समस्या है. लेकिन आज तक ये चुनावी मुद्दा नहीं बने. शायद यही कारण है कि दिल्ली- एनसीआर के कई लोग साफ हवा तलाशने के लिए स्थाई या अस्थायी रूप से पलायन भी कर रहे हैं.
Local Circle द्वारा दिल्ली, नोएडा, गाज़ियाबाद, फरीदाबाद के 19 हज़ार लोगों पर नवंबर में किए गए सर्वे में 13% लोगों ने बताया कि प्रदूषण की वजह से वो अस्थाई रूप से दिल्ली-एनसीआर छोड़ कर जा चुके हैं.
लोगों को हो रही समस्याओं की बात करें तो सर्वे में शामिल 69% लोगों ने खांसी, 56% लोगों ने आंखों में जलन, 50% लोगों ने नाक बहना या जकड़ने की समस्या के बारे में बताया है. 44 % लोगों के मुताबिक उन्हें तो दिल्ली-एनसीआर की जहरीली हवा की वजह से सांस तक लेने में दिक्कत हो रही है.
इन्होंने छोड़ी प्रदूषण की वजह से दिल्ली
सर्वे में शामिल बातें सिर्फ कागज़ी नहीं हैं ज़ी न्यूज की टीम की भी एक्सक्लूसिव पड़ताल के दौरान ऐसे लोगों से मुलाकात हुई जो या तो दिल्ली के प्रदूषण की वजह से शहर छोड़ कर कहीं और बस चुके हैं या फिर हर वर्ष प्रदूषण की वजह से अस्थाई तौर पर दिल्ली छोड़ कर चले जाते हैं. साथ ही डॉक्टरों के OPD के बाहर तक हमारी टीम ने लम्बी कतारें देखीं जिन्हें प्रदूषण सम्बंधित समस्याएं हो रही हैं.
दिल्ली हो या एनसीआर. इमारतों से लेकर, पुल, टावर सब धुंध की चादर में लिपट कर धुंधला हो चुका है. AQI बेहद खराब श्रेणी में है और राजधानी दिल्ली धुंध या स्मॉग का एक पर्यायवाची बन चुकी है.
80 वर्ष के बुजुर्ग पीके धर वर्ष 1990 में कश्मीर से आतंकियों की वजह से पलायन करके दिल्ली आकर बसे थे. मेहनत की कमाई से भाई के साथ मिलकर दिल्ली के अशोक विहार में एक घर बनवाया और पूरा परिवार वहीं रहता था. लेकिन शायद दिल्ली की हवाओं को उनका खुश रहना नहीं मंजूर था. फेफड़ों में संक्रमण हो गया और डॉक्टर ने सलाह दी कि अगर जीवित रहना है तो दिल्ली छोड़ कर किसी खुली जगह में बस जाकर जाएं. धर मेहनत की कमाई से बनवाया घर छोड़ कर कुछ साल पहले हरियाणा के सोनीपत में जाकर एक 2 BHK फ्लैट में रहने लगे. लेकिन पलायन करना तो शायद उनकी किस्मत में लिखा हुआ था. 2018 से दिल्ली की तरह ही सोनीपत का भी प्रदूषण स्तर बढ़ने लगा, उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगी. फिर क्या अब हर वर्ष ठंड में खुद का घर छोड़ कर बेटे के पास हैदराबाद चले जाते हैं. ताकि सांस तो कम से कम ले सकें.
दिल्ली देश की राजधानी है वहां घर होना तो किसी भी व्यक्ति का सपना हो सकता है ऐसा ही एक सपना आरपी सिरोहा का था. 80 के दशक में दिल्ली के नरेला इलाके में अपना आलीशान घर बनवाया, लिफ्ट तक लगवाई, आज कीमत करोड़ो में है, व्यापार भी दिल्ली मे अच्छा चल रहा था लेकिन 10 साल पहले फेफड़ों में गंभीर संक्रमण हो गया. डॉक्टर ने 2 साल तक इलाज किया लेकिन फेफड़ों के संक्रमण को ठीक करने लिए जो दवा ले रहे थे, वो हार्ट पर गलत असर करने लगी. डॉक्टर ने कहा दवा खाएंगे तब भी जान जा सकती है और नहीं खाएंगे तब भी, ऐसे में एक काम करें कि हवा बदले और दिल्ली छोड़ कर जाएं. आज सोनीपत में एक 2 BHK फ्लैट में बसर कर रहे हैं, जो उनके खुद के घर के आंगन से भी छोटा है. व्यापार आज भी दिल्ली में है लेकिन 4 वर्ष से गए नहीं क्योंकि वहां जाएंगे तो सांस की समस्या फिर आ जाएगी. हालांकि अब जहां रहते हैं वहां भी सांस फूल रही है क्योंकि जो प्रदूषण का स्तर कभी दिल्ली में था आज वो आसपास के शहरो में भी आ चुका है.
विश्व बैंक की चौंकाने वाली रिपोर्ट
प्रदूषण की वजह से पलायन की इस खबर को अगर सरकारें हल्के में ले रही हैं, तो उन्हें विश्व बैंक की पिछले साल जारी की गई एक रिपोर्ट को भी पढ़ना चाहिए. विश्व बैंक के मुताबिक वातावरण में बदलाव की वजह से वर्ष 2050 तक 21 करोड़ से ज्यादा लोग देश में ही एक जगह से दूसरी जगह पलायन करने को मजबूर हो जाएंगे.
इसी साल अप्रैल में ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जर्मनी के वैज्ञानिकों की स्टडी के मुताबिक ईरान में वायु प्रदूषण की वजह से उसकी 5% आबादी को 2011 से 2016 तक एक जगह से दूसरी जगह पलायन करना पड़ा था. यह संख्या 43 लाख थी.
इसी वर्ष जुलाई में संयुक्त राष्ट्र ने स्वस्थ वातावरण को मानवाधिकार तक मानते हुए एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया था. लेकिन जाने कब लोगों को यह स्वस्थ हवा वाला मानवाधिकार मिल पाएगा.
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